करवा चौथ का महत्व
करवा चौथ का पर्व भारत में विवाहित महिलाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह पर्व पति की लंबी उम्र, सुखी वैवाहिक जीवन और समर्पण का प्रतीक है। इस दिन महिलाएं दिनभर निर्जला व्रत रखती हैं और रात को चांद देखने के बाद व्रत खोलती हैं। करवा चौथ व्रत न केवल धार्मिक आस्था का पर्व है, बल्कि यह पति-पत्नी के रिश्ते में गहरे प्रेम और विश्वास का प्रतीक भी है।
करवा चौथ की कहानी
करवा चौथ व्रत की कथा पौराणिक मान्यताओं और धार्मिक ग्रंथों से जुड़ी हुई है। मुख्य कथा वीरवती नामक एक रानी की है, जो अपने सात भाइयों की एकमात्र बहन थी। वीरवती ने पहली बार करवा चौथ का व्रत रखा था, लेकिन दिनभर भूखी-प्यासी रहने के कारण वह बहुत कमजोर हो गई। उसकी हालत देखकर उसके भाइयों ने उसे भोजन कराने की योजना बनाई और छल से एक नकली चांद दिखाकर उसका व्रत तुड़वा दिया। परिणामस्वरूप, उसका पति मृत्यु को प्राप्त हुआ। बाद में, वीरवती ने दृढ़ निश्चय और समर्पण के साथ फिर से व्रत रखा और अपने पति को जीवनदान प्राप्त हुआ। इस कथा से यह संदेश मिलता है कि सच्चे प्रेम और समर्पण से सभी बाधाओं को पार किया जा सकता है।
करवा चौथ पूजा विधि और मुहूर्त
करवा चौथ व्रत के दौरान माता पार्वती की विशेष पूजा की जाती है। इस व्रत में माता पार्वती को अखंड सौभाग्यवती और सुहागिनों की संरक्षिका के रूप में पूजा जाता है। उनके साथ भगवान शिव, भगवान गणेश और चंद्रमा की भी पूजा की जाती है। महिलाएं माता पार्वती से अपने पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं। करवा चौथ की पूजा में माता पार्वती को सुहागिनों के प्रतीक के रूप में सोलह श्रृंगार की सामग्री भी अर्पित की जाती है।
यहां पूजा विधि की संक्षिप्त जानकारी :
- सुबह का संकल्प: सूर्योदय से पहले महिलाएं सरगी (सास द्वारा दी गई मिठाइयां और फल) का सेवन करती हैं और निर्जला व्रत का संकल्प लेती हैं।
- शाम की पूजा तैयारी: शाम को चंद्रोदय से पहले पूजा की तैयारी की जाती है। पूजा स्थल को स्वच्छ कर के, कलश (करवा), दीपक, और अन्य पूजा सामग्री को सजाया जाता है।
- करवा चौथ की कथा सुनना: महिलाएं एकत्रित होकर करवा चौथ की कथा सुनती हैं और अपने पति की लंबी आयु के लिए प्रार्थना करती हैं।
- चंद्रमा की पूजा: चंद्रमा निकलने के बाद उसे छलनी से देखा जाता है, फिर अर्घ्य (जल चढ़ाना) देकर उसकी पूजा की जाती है।
- पति द्वारा व्रत तोड़ना: पति पत्नी को पानी और मिठाई खिलाकर उसका व्रत तुड़वाते हैं, और इस तरह व्रत पूरा होता है।
करवा चौथ 2024 का मुहूर्त :
- करवा चौथ तिथि: 20 अक्टूबर 2024 (रविवार)
- चंद्रोदय का समय: रात 8:00 बजे (स्थानीय समय अनुसार)
- पूजा का मुहूर्त: शाम 05:45 बजे से रात 07:05 बजे तक
करवा चौथ के दौरान महिलाओं द्वारा किए जाने वाले अन्य रीति-रिवाज
करवा चौथ का त्योहार सिर्फ व्रत रखने तक सीमित नहीं है। यह दिन कई अन्य रीति-रिवाजों से भी भरपूर होता है। ये रीति-रिवाज सदियों से चले आ रहे हैं और इनमें सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व है। आइए जानते हैं इन रीति-रिवाजों के बारे में विस्तार से:
1. सरगी:
- महत्व: सुबह उठकर महिलाएं अपनी सासू मां से सरगी लेती हैं। यह सरगी एक थाली में विभिन्न प्रकार के व्यंजन, फल और मिठाइयों से भरी होती है। सरगी का महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह सासू मां और बहू के बीच के प्यार और सम्मान का प्रतीक है।
2. सोलह श्रृंगार:
- महत्व: करवा चौथ के दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं। इसमें सिंदूर, बिंदी, काजल, मेहंदी, चूड़ी, नथ, मांग टीका आदि शामिल हैं। सोलह श्रृंगार सुहागिन महिलाओं की सुंदरता और आकर्षण को बढ़ाते हैं और उन्हें देवी के समान बनाते हैं।
3. चंद्र दर्शन:
- महत्व: शाम को जब चंद्रमा निकलता है, तो महिलाएं उसे छलनी से देखती हैं और अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं। छलनी का उपयोग इसलिए किया जाता है क्योंकि माना जाता है कि यह बुरी नजर से बचाती है।
4. करवा पूजन:
- महत्व: महिलाएं करवा पूजन करती हैं। करवा एक मिट्टी का बर्तन होता है जिसे सुहाग की निशानी माना जाता है। करवा पूजन से सुहाग की रक्षा होती है।
5. कथा सुनना:
- महत्व: करवा चौथ की रात को महिलाएं करवा चौथ की कथा सुनती हैं। कथा सुनने से धार्मिक भावनाओं को बढ़ावा मिलता है और पति-पत्नी के रिश्ते और मजबूत होते हैं।
6. मेहंदी लगाना:
- महत्व: महिलाएं हाथों और पैरों में मेहंदी लगाती हैं। मेहंदी सुहाग की निशानी मानी जाती है और यह महिलाओं को सुंदर बनाती है।
7. गीत गाना:
- महत्व: महिलाएं करवा चौथ के गीत गाती हैं। गीतों से उत्सव का माहौल बनता है और महिलाओं के मन में खुशी होती है।
इन रीति-रिवाजों के पीछे कई धार्मिक और सामाजिक कारण हैं। ये रीति-रिवाज पति-पत्नी के रिश्ते को मजबूत बनाने में भी मदद करते हैं।