विजयदशमी (दशहरा) का महत्व

विजयदशमी, जिसे दशहरा के नाम से भी जाना जाता है, हिन्दू धर्म का एक प्रमुख पर्व है। यह त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और रावण के वध के रूप में मनाया जाता है। भगवान श्री राम ने इस दिन रावण का वध कर लंका पर विजय प्राप्त की थी, इसलिए इस दिन को “विजयदशमी” कहा जाता है। यह त्यौहार पूरे भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, खासकर रावण दहन के रूप में। विजयदशमी का त्यौहार न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह सदाचार, सत्य और धर्म की जीत का प्रतीक है।

इस साल 2024 में दशहरा का पर्व अबूझ मुहूर्त का दिन है।हिन्दू धर्म में कुछ विशेष दिन ऐसे होते हैं जिन्हें अबूझ मुहूर्त कहा जाता है। इन दिनों में किसी भी प्रकार के शुभ कार्य के लिए अलग से मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं होती। अबूझ मुहूर्त का अर्थ है कि यह दिन इतना पवित्र और शुभ होता है कि इसमें किसी भी प्रकार के कार्य को बिना ज्योतिषीय सलाह के किया जा सकता है। खासकर विवाह, गृह प्रवेश, नए व्यवसाय की शुरुआत, और अन्य मंगल कार्यों के लिए ये दिन अत्यधिक शुभ माने जाते हैं। माना जाता है कि इस दिन किए गए कार्य जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और प्रगति लाते हैं। इसलिए दशहरा का दिन उन लोगों के लिए एक सुनहरा अवसर होता है जो अपने जीवन में किसी नए अध्याय की शुरुआत करना चाहते हैं।

दशहरा 2024 की तिथि, शुभ मुहूर्त और रावण दहन का समय


साल 2024 में दशहरा का पर्व 12 अक्टूबर, शनिवार को मनाया जाएगा। यह तिथि हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को आती है। 

विजयदशमी के दिन का शुभ मुहूर्त अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है। इस दिन रावण दहन का कार्य शुभ मुहूर्त में ही किया जाता है, ताकि बुराई पर अच्छाई की जीत सुनिश्चित हो सके।

  • आरंभ समय: 12 अक्टूबर 10:58 AM (सुबह)
  • समापन समय: 13 अक्टूबर 09:08 AM (सुबह)

दशहरा 2024 पूजा के लिए विजय मुहूर्त

  • तिथि: 12 अक्टूबर, शनिवार
  • विजय मुहूर्त: 01:17 PM से 03:35 PM (दोपहर) तक रहेगा

दशहरा के अवसर पर किसकी पूजा की जाती है?

दशहरा का त्यौहार मुख्य रूप से रावण के वध के साथ जुड़ा हुआ है, लेकिन इस दिन कई देवताओं और प्रतीकों की भी पूजा की जाती है। आइए जानते हैं कि दशहरा में किसकी पूजा की जाती है और इसका महत्व क्या है।

भगवान श्रीराम की पूजा
दशहरा का सबसे प्रमुख धार्मिक संदर्भ रामायण से जुड़ा है, जिसमें भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था। इसलिए इस दिन भगवान श्रीराम की विशेष पूजा की जाती है। रामलीला के मंचन के दौरान भगवान राम, माता सीता, और लक्ष्मण के चरित्रों की पूजा की जाती है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। भगवान राम की पूजा से हमें सत्य, धर्म और न्याय के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है।

देवी दुर्गा की पूजा
दशहरा नवरात्रि का अंतिम दिन भी होता है, जो देवी दुर्गा की उपासना के लिए प्रसिद्ध है। नवरात्रि के नौ दिनों तक देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है, और दशहरा के दिन देवी दुर्गा के महिषासुर मर्दिनी स्वरूप की विशेष पूजा की जाती है। यह पूजा इस बात का प्रतीक है कि शक्ति और साहस के बल पर अधर्म पर धर्म की जीत हो सकती है। बंगाल और पूर्वी भारत में इस दिन को दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है।

शस्त्र पूजा
दशहरा को शस्त्र पूजा का दिन भी माना जाता है। प्राचीन काल से ही इस दिन योद्धा अपने शस्त्रों की पूजा करते आए हैं। यह परंपरा आज भी कायम है, खासकर सैन्य और पुलिस बलों में। इसके पीछे मान्यता यह है कि शस्त्रों की पूजा करने से हमें ताकत और सुरक्षा मिलती है, जिससे हम अपने कर्तव्यों का पालन सही ढंग से कर सकें। इस दिन लोग अपने वाहनों और औजारों की भी पूजा करते हैं।

अन्य देवताओं की पूजा
कई स्थानों पर दशहरा के दिन विभिन्न अन्य देवताओं की भी पूजा की जाती है। किसान इस दिन अपने खेतों की पूजा करते हैं, व्यापारी अपने व्यवसाय की सफलता के लिए देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं, और विद्यार्थी मां सरस्वती से ज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। इसके अलावा, दशहरा के दिन समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा अपने-अपने आराध्य देवों की पूजा की जाती है।