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Wednesday, July 9, 2025

कादर ख़ान की पुण्यतिथि पर जानिए उनकी जिंदगी की अनसुनी बातें

आज, 31 दिसंबर 2024, को भारतीय सिनेमा के महान अभिनेता, संवाद लेखक और निर्देशक कादर ख़ान की छठी पुण्यतिथि है।  उनका जन्म 22 अक्टूबर 1937 को काबुल, अफगानिस्तान में हुआ था, और उन्होंने 31 दिसंबर 2018 को कनाडा में अंतिम सांस ली।,उनकी कला और योगदान आज भी हमारे दिलों में जीवित हैं। इस अवसर पर, हम उनके जीवन, संघर्ष, उपलब्धियों और भारतीय सिनेमा में उनके योगदान को याद करते हैं।

प्रारंभिक जीवन और संघर्ष

कादर ख़ान का जन्म 22 अक्टूबर 1937 को काबुल, अफगानिस्तान में हुआ था। उनका परिवार बाद में मुंबई के कमाठीपुरा इलाके में बस गया, जहां उन्होंने कठिन परिस्थितियों में अपना बचपन बिताया। कादर ख़ान ने इस्माइल यूसुफ कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की और बाद में एक शिक्षक के रूप में भी कार्य किया। उनकी मां की सलाह और प्रेरणा ने उनके जीवन की दिशा बदल दी, जिससे वे अभिनय की दुनिया में कदम रखने के लिए प्रेरित हुए।

फिल्मी करियर की शुरुआत

कादर ख़ान के फिल्मी करियर की शुरुआत तब हुई जब उन्होंने अपने कॉलेज में एक भूमिका निभाई, जिसे अभिनेता दिलीप कुमार ने देखा। दिलीप कुमार उनके प्रदर्शन से प्रभावित हुए और उन्हें ‘सगीना महतो’ और ‘बैराग’ फिल्मों में काम दिया। इसके बाद, कादर ख़ान ने 1973 में फिल्म ‘दाग’ से अपने अभिनय करियर की शुरुआत की, जिसमें उन्होंने अभियोग पक्ष के वकील की भूमिका निभाई।

संवाद लेखन और अभिनय

कादर ख़ान न केवल एक बेहतरीन अभिनेता थे, बल्कि एक उत्कृष्ट संवाद लेखक भी थे। उन्होंने कई फिल्मों के संवाद लिखे, जिनमें ‘अमर अकबर एंथनी’, ‘कुली’, ‘सत्ते पे सत्ता’, ‘शराबी’ और ‘लावारिस’ जैसी सुपरहिट फिल्में शामिल हैं। उनकी लेखनी ने फिल्मों को एक नई ऊंचाई दी और दर्शकों के दिलों में विशेष स्थान बनाया।

खलनायक से हास्य अभिनेता तक का सफर

अपने करियर की शुरुआत में कादर ख़ान ने कई फिल्मों में खलनायक की भूमिकाएं निभाईं। हालांकि, एक घटना ने उनके करियर की दिशा बदल दी। उनके बेटे कुद्दूस को स्कूल में बच्चे चिढ़ाते थे कि उसके पापा हीरो से मार खाते हैं, जिससे वह झगड़ने लगता था। एक दिन, जब उनका बेटा घर आया तो उसके कपड़े फटे हुए थे। इस घटना ने कादर ख़ान को प्रभावित किया और उन्होंने खलनायक की भूमिकाएं छोड़कर हास्य भूमिकाएं निभाने का निर्णय लिया। इसके बाद, उन्होंने ‘हिम्मतवाला’ जैसी फिल्मों में हास्य भूमिकाएं निभाईं और दर्शकों के बीच लोकप्रिय हो गए।

प्रमुख फिल्में और योगदान

कादर ख़ान ने 43 साल के करियर में 300 से अधिक फिल्मों में काम किया। उनकी प्रमुख फिल्मों में ‘किशन कन्हैया’, ‘हम’, ‘बोल राधा बोल’, ‘आंखें’, ‘दूल्हे राजा’, ‘कुली नंबर 1’, ‘जुदाई’ और ‘आंटी नंबर 1’ शामिल हैं। उन्होंने अपने अभिनय से दर्शकों को हंसाया, रुलाया और जीवन के विभिन्न पहलुओं से परिचित कराया। उनकी बहुमुखी प्रतिभा ने उन्हें भारतीय सिनेमा का एक अभिन्न हिस्सा बना दिया।

पुरस्कार और सम्मान

कादर ख़ान को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें 1982 में फिल्म ‘मेरी आवाज़ सुनो’ के लिए सर्वश्रेष्ठ संवाद लेखन का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला। इसके अलावा, 1991 में ‘बाप नम्बरी बेटा दस नम्बरी’ के लिए सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता और 1993 में ‘अंगार’ के लिए सर्वश्रेष्ठ संवाद लेखन का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला। 2013 में, उन्हें हिन्दी फ़िल्म जगत और सिनेमा में योगदान के लिए साहित्य शिरोमणि पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

अंतिम दिन और निधन

अपने जीवन के अंतिम दिनों में, कादर ख़ान सुप्रान्यूक्लियर पाल्सी नामक बीमारी से जूझ रहे थे, जो एक लाइलाज बीमारी है। सांस लेने में तकलीफ़ के कारण उन्हें 28 दिसंबर 2018 को कनाडा के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां वे अपने बेटे-बहू के पास इलाज कराने के लिए गए थे। 31 दिसंबर 2018 को उनका निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार कनाडा के मिसिसागुआ स्थित मेअडोवले कब्रिस्तान में हुआ।

कादर ख़ान की विरासत आज भी जीवित है। उनकी फिल्में और संवाद आज भी दर्शकों के बीच लोकप्रिय हैं। उनका जीवन संघर्ष, मेहनत और प्रतिभा का प्रतीक है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बना रहेगा।

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