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Friday, October 10, 2025

शरद पूर्णिमा 2024: जानें तिथि, महत्व और शुभ मुहूर्त

साल 2024 में शरद पूर्णिमा का पर्व 16 अक्टूबर को मनाया जाएगा। यह त्यौहार विशेष रूप से चंद्रमा की पूजा और धन-संपत्ति की कामना के लिए महत्वपूर्ण होता है। आइए जानते हैं इस पर्व की तिथि, महत्व और शुभ मुहूर्त के बारे में।

शरद पूर्णिमा 2024: तिथि और समय

  • शरद पूर्णिमा की शुरुआत: 16 अक्टूबर 2024, रात 8 बजकर 41 मिनट पर
  • पूर्णिमा का समापन: 17 अक्टूबर 2024, शाम 4 बजकर 53 मिनट पर
  • चंद्रोदय का समय: 16 अक्टूबर को शाम 5 बजकर 5 मिनट पर

शरद पूर्णिमा का धार्मिक महत्व

  • चंद्रमा की किरणों का महत्व: इस दिन की रात को चंद्रमा की किरणों में अमृत समान गुण होते हैं, जो शरीर और मन के लिए अत्यंत लाभकारी माने जाते हैं। इस कारण लोग इस दिन चांदनी में खीर रखकर उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात खीर को चंद्रमा की चांदनी में रखने से वह अमृततुल्य हो जाती है और इसके सेवन से स्वास्थ्य लाभ मिलता है।
  • व्रत का महत्व: इस दिन व्रत रखने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है और व्यक्ति के सभी कष्टों का निवारण होता है। व्रत रखने वाले को दिनभर उपवास करना चाहिए और शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही भोजन करना चाहिए। कई लोग इस दिन केवल फलाहार और दूध का सेवन करते हैं और रातभर जागकर मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करते हैं।
  • धन की देवी लक्ष्मी का अवतरण: शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है,जिसका अर्थ है “कौन जाग रहा है।” ऐसा माना जाता है कि माता लक्ष्मी रात में आकर उन लोगों को आशीर्वाद और धन प्रदान करती हैं जो जागकर उनकी पूजा करते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन मां लक्ष्मी समुद्र मंथन के दौरान अवतरित हुई थीं। इसलिए, इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
  • रासलीला का संबंध: शरद पूर्णिमा को भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोपियों के साथ रासलीला की रात के रूप में भी याद किया जाता है। इस दिन को भक्त विशेष रूप से भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में मनाते हैं और रासलीला का आयोजन करते हैं।

शरद पूर्णिमा की पूजन विधि

इस दिन चंद्रमा की पूजा के साथ-साथ मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की आराधना करने से घर में धन-संपत्ति और सुख-शांति का वास होता है। इस दिन प्रातःकाल स्नान कर पूजा स्थल को साफ करके भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित की जाती है। पूजन के लिए दूध, चावल, खीर, पंचामृत, फूल, धूप, दीपक, चंदन, रोली, अक्षत, मिठाई और तुलसी के पत्तों की सामग्री तैयार की जाती है। भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा कर, उन्हें स्नान कराकर चंदन, रोली, अक्षत और फूल अर्पित किए जाते हैं, साथ ही खीर, मिठाई और पंचामृत का भोग लगाया जाता है। रात में चंद्र देव को दूध मिश्रित जल से अर्घ्य दिया जाता है, और खीर को चांदनी में रखकर अगली सुबह प्रसाद रूप में ग्रहण किया जाता है। शरद पूर्णिमा के दिन उपवास रखकर रातभर जागरण और भजन-कीर्तन किया जाता है, और अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है, जिससे परिवार में सुख-शांति का वास होता है।

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